सेहत को लेकर जागरूक रहने वाली माताओं को अपने बच्चों को लेकर बहुत चिंता रहती हैं, जिनमें से एक है कि उन्हें बच्चों को सप्लीमेंट देने चाहिए या नहीं। बात जब बच्चों में पोषण की ज़रूरत से जुड़ी हो तो, एक माँ बहुत आसानी से कई तरह के विचारों से प्रभावित हो जाती है। माँ होने के नाते, कोई भी फैसला लेने से पहले आपके मन मे बहुत सारे सवाल आ सकते हैं। नीचे दिए गए सवालों से आपको वो सारे जवाब मिल जाएंगे, जिसके बाद सप्लीमेंट को लेकर आप सही फैसला ले पाएँगे।
सवाल: न्यूट्रिशनल (पोषक तत्वों के) सप्लीमेंट क्या होते हैं? हम टेलीविजन और सोशल मीडिया पर बहुत से विज्ञापन देखते हैं, जिनमें बताया जाता है कि ये बच्चों के विकास में मदद करते हैं। इनमें क्या -क्या होता है और क्या ये मेरे 5 साल के बच्चे के लिए ज़रूरी हैं?
आपको सबसे पहले यह समझने की ज़रूरत है कि न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट आमतौर पर दो तरह के होते हैं। एक वे, जिन्हें आप मुँह में रख कर पानी के साथ लेते हैं और दूसरे वे, जिन्हें आप दूध या पानी मे मिलाकर पीते हैं।
गोली के रूप में मिलने वाले न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट में सिर्फ विटामिन और मिनरल होते हैं, वहीं पाउडर में न सिर्फ विटामिन और मिनरल बल्कि कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट भी होता है। कुछ ऐसी गोलियां भी आती है, जिनमें डोकोसाहैक्साइनोइक एसिड (डीएचए) या विटामिन सी जैसा सिर्फ एक ही पोषक तत्व होता है। सप्लीमेंट की गोली में आमतौर पर रोज़ाना की ज़रूरत के मुताबिक 100% पोषक तत्व होता है। डॉक्टर की सलाह के बिना इस तरह की गोलियां नहीं देनी चाहिए। पाउडर के रूप में मिलने वाले सप्लीमेंट को पानी या दूध में मिलाया जाता है, उसमें रोज़ाना की ज़रूरत के मुताबिक 30-75 % तक अलग अलग विटामिन और मिनरल होते हैं।
यहाँ यह बताना बहुत ज़रूरी है कि कोई भी सप्लीमेंट (चाहें वह पाउडर हो या गोली) कोई जादुई दवा नहीं है जिससे बच्चे के पोषण से जुड़ी सारी ज़रूरतें पूरी हो जाएगी। फिर चाहे आप उनकी लंबाई बढ़ाना चाहते हैं, इम्युनिटी बढ़ाना चाहते हैं या फिर दिमाग तेज़ करना चाहते हैं। कोई भी सप्लीमेंट एक संतुलित एवं पौष्टिक डाइट और शारीरिक गतिविधियों से होने वाले फ़ायदों की जगह नहीं ले सकता है। तो, अगर आप इस बात को लेकर चिंतित हैं कि न्यूट्रिएंट सप्लीमेंट देना ज़रूरी है या नहीं, तो इसका जवाब है कि जब तक डॉक्टर बच्चे की जांच न कर लें और बच्चे के सही विकास के लिए इन सप्लीमेंट को देने की ज़रूरत न महसूस करे, तब तक ऐसा करना ज़रूरी नहीं है।
सवाल: मेरा बच्चा 5 साल का है और वह बिल्कुल खुश और स्वस्थ है। हालांकि, उसकी लंबाई अपने स्कूल के दोस्तों से कम है। क्या उसकी लंबाई बढ़ाने के लिए मैं उसे किसी तरह का न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट दे सकती हूँ?
हर बच्चे के बढ़ने का तरीका एक दूसरे से अलग होता है और हर आयु वर्ग के बच्चों की लंबाई की एक सीमा होती है। उदाहरण के लिए एक 5 साल की लड़की की लंबाई 97 सेंटीमीटर से 118 सेंटीमीटर के बीच कुछ भी हो सकती है। आपकी बेटी की लंबाई उसके दोस्तों से कम हो सकती है लेकिन अगर उसकी लंबाई इस सीमा के अंदर आती है, तो वह सही लंबाई मानी जाएगी। लेकिन अगर उसकी लंबाई अपनी उम्र के हिसाब से न्यूनतम सीमा से कम है तब आपको उसके विकास को लेकर डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए।
अगर बच्चे के साथ कोई भी ऐसी मेडिकल समस्या नहीं है जिससे उसकी लंबाई रुक सके, तो एक अच्छी संतुलित डाइट जिसमें प्रोटीन, कैल्शियम और आयरन से भरे खाद्य पदार्थ शामिल हों और शारीरिक गतिविधियों से ही इस समस्या का हल निकल सकता है। कोई भी न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट बच्चे के जीवन में इन ज़रूरी चीज़ों की जगह नहीं ले सकता है। कूदना, दौड़ना, फुटबॉल खेलना, तैराकी और डांस करना, ये कुछ ऐसी अच्छी शरीर की कसरत हैं, जिनसे बच्चों की लंबाई बढ़ने में मदद मिल सकती है। एक सेहतमंद डाइट और दिन भर में कम से कम 1.5-2 घंटे कसरत करने से बच्चे को बढ़ने में मदद मिलेगी।
सवाल: मेरे बेटे की उम्र 3 साल है और वह एक गोलमटोल बच्चा था। लेकिन जब से उसने प्लेस्कूल जाना शुरू किया हैं, तब से वह बहुत बीमार रहने लगा है और बहुत पतला हो गया है। मेरे दोस्त सलाह देते हैं कि उसका वजन बढ़ाने और सर्दी-जुकाम से निजात दिलाने के लिये मुझे उसे सप्लीमेंट देने चाहिए। मैं उसे कौन सी न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट दे सकती हूँ?
एक बच्चा जब प्लेस्कूल जाना शुरू करता है तो उसका बीमार होना बहुत ही सामान्य बात है क्योंकि अब वो दूसरे बच्चों के सम्पर्क में आता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि 3 साल के बच्चे का इम्यून सिस्टम अभी तक पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। एक बच्चे का इम्यून सिस्टम 5-7 साल की उम्र तक ही पूरी तरह से विकसित हो पाता है। अगर आपने ध्यान दिया हो तो आपको पता चलेगा कि इस उम्र के बाद ही बच्चों के डॉक्टर उन्हें कम वैक्सीनेशन देने लगते हैं। इसलिए, अगर प्लेस्कूल में दूसरे बच्चों को सर्दी-जुकाम है, तो आपके बच्चे को भी उससे सर्दी-जुकाम होने की ज़्यादा संभावना रहती है। लेकिन यह सही भी है क्योंकि बाहर जाने से बच्चों की इम्युनिटी मज़बूत होने में मदद मिलती है।
यहां बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने के कुछ तरीके बताए गए हैं:
- बच्चों को न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट देने के बजाय लंच बॉक्स में ऐसा खाना देना चाहिए जो एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हो, क्योंकि इससे बच्चों को इम्युनिटी बढ़ाने और संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है।
- एक संतुलित पौष्टिक डाइट से होने वाले फ़ायदों की भरपाई किसी न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट से नही की जा सकती है।
- बच्चे जब स्कूल से आते हैं तो उन्हें अदरक डाल कर संतरे का रस देना चाहिए। इससे बच्चों को एनर्जी तो मिलती ही है, साथ ही संक्रमण से लड़ने के लिए विटामिन सी भी मिलता है।
- बादाम, पपीता, कीवी, ब्रोकली, टमाटर, पालक और दही से भी इम्युनिटी बढ़ती है।
- आप बच्चों को बादाम के गर्म दूध में थोड़ी सी हल्दी और ऑर्गेनिक बिना ब्लीच का गुड़ डालकर दे सकते हैं।
- बच्चों के स्कूल से आते ही हाथ मुँह धो कर और कपड़े बदल कर ही खाने के लिए बैठाना चाहिए, इससे कुछ हद तक संक्रमण से बचाव होता है।
- ध्यान रखें कि बच्चे पर्याप्त नींद लें (एक दिन में 11 घंटे) और कसरत भी करें।
- आमतौर पर बच्चे जब छोटे होते हैं तो वो गोलमटोल होते हैं, लेकिन वे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, उनका फैट कम होने लगता है। इसलिए गोलमटोल बच्चों का बड़ा होने पर थोड़ा पतला हो जाना सामान्य बात है। अगर आपको लगता है कि बच्चे को लगातार सर्दी-जुकाम रहता है और शायद इसकी वजह से उसका वजन कम हो रहा है, तो ऐसे में बच्चों की डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए। अगर डॉक्टर को लगता हैं कि बच्चे को न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट की ज़रूरत है तो वे आपको इसकी सलाह दे सकते हैं।
सवाल: मैं अपने बच्चे की खान-पान की आदतों से बहुत परेशान हूँ। वह स्कूल में कुछ भी नहीं खाता और अपने लंच बॉक्स का सारा खाना वापिस ले आता है। क्या वह पोषण की कमी से बीमार हो जाएगा या मुझे टी.वी पर दिखाए जाने वाले न्यूट्रिशनल पाउडर को दूध में मिला कर उसे देना चाहिए?
यह माताओं द्वारा अक्सर की जाने वाली एक बहुत ही आम शिकायत है, खासकर तब, जब बच्चे स्कूल जाना शुरू करते हैं। क्या वह घर पर सही ढंग से खाना खाता है? क्या उसके वजन और लंबाई की वृद्धि दर सामान्य है और उसके आयु वर्ग के हिसाब से सही है? अगर हाँ तो फिर चिंता की कोई बात नहीं। आपके बच्चे को सप्लीमेंट देने की कोई ज़रूरत नही है। आप कुछ छोटे-छोटे बदलाव करके इस बात को सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपका बच्चा स्कूल में अपना लंच खाने लगे। उसका लंच बॉक्स तैयार करने की प्रक्रिया में उसे भी शामिल करें। बच्चे से पूछें कि वह क्या खाना चाहता है (सिर्फ पौष्टिक खाने के ही विकल्प दें) और खुद ही पैक करने को कहें।
बच्चे स्कूल में अपना लंच नहीं खाते, इसका एक कारण यह भी है कि माताएँ अक्सर बहुत ज़्यादा खाना पैक कर देती हैं। बच्चे जब अपने लंच बॉक्स में बहुत सारा खाना देखते हैं तो उनका खाने का मन नहीं करता, उनकी भूख मिट जाती है। इसलिए खाने की मात्रा का ध्यान रखें और लंच बॉक्स में उतना ही खाना पैक करना चाहिए जितना बच्चे आराम से खा सकते हैं। इसके अलावा थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दो या तीन अलग अलग तरह की खाने की चीज़ें पैक करें जिससे बच्चे को खाना मज़ेदार लगेगा। उदाहरण के लिए एक पूरा परांठा और पनीर, शिमला मिर्च की सब्ज़ी के बजाय बच्चों को खाने में गाजर के लंबे टुकड़े, रोटी पर हम्मस (चने की चटनी) फैला कर रोल बना कर दें या छोटा सा परांठा और पनीर, शिमला मिर्च के टुकड़ो में सीख लगा कर दें (टूथपिक के तीखे किनारों को काट दें)। उनके लंच टाइम को मज़ेदार बनाने की कोशिश करें। नए तरीक़े अपनाएँ और देखे कि बच्चा कैसे अपना पूरा लंच बॉक्स खत्म करता है।
सवाल: मेरा बेटा 5 साल का है और उसका जन्म समय से पहले हुआ था। वह दूध नहीं पचा पाता और दही, छाछ उसे पसंद नहीं है। वह हमेशा से साथ में पढ़ने वाले अपनी उम्र के बाकी बच्चों से छोटा लगता है और कभी-कभी उसके गले में खाना अटक जाता है। वह जब भी ऐसा करता है, तो मैं उसे खाना देना बंद कर देती हूँ। क्या मैं उसे मल्टीविटामिन टेबलेट जैसा न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट दे सकती हूँ?
आपकी बातों से ऐसा लगता है जैसे आपके बच्चे को डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ से पूरी जांच की ज़रूरत है। समय से पहले पैदा हुए बच्चों का जन्म का वजन कम ही होता है। हालांकि यह बचपन के पहले दो-तीन सालों में ही ठीक हो जाता है जिसे कैच अप ग्रोथ के नाम से जाना जाता है। अगर सही मात्रा में पोषण दिया जाए तो आमतौर पर बच्चे अपने साथियों के बराबर हो जाते हैं और उनका वजन व लंबाई अपनी उम्र के दोस्तों जितनी हो जाती हैं। अगर बच्चा इस तरह से विकास नहीं कर रहा तो बच्चों के डॉक्टर ही इसके पीछे के सभी मेडिकल कारणों को समझ सकते हैं और आपको इस बारे में बिल्कुल सही सलाह दे सकते हैं।
- अगर बच्चा दूध नहीं पचा सकता और दूध पीने के बाद बच्चे को पेट की परेशानी या दर्द, दस्त या पेट फूलने जैसी समस्यायें होती हैं, तो इसका मतलब है कि बच्चे को लैक्टोस सहन नहीं होता है। हालांकि, दूध मुख्य रूप से कैल्शियम और प्रोटीन से भरपूर होता है जो बढ़ते बच्चों के लिए बहुत ज़रूरी है, खासकर अगर बच्चा शाकाहारी है। इसलिए, आप सोया मिल्क जैसे दूसरे विकल्प आज़मा सकते हैं।
- जैसा आपने बताया कि बच्चे को दही या छाछ पसंद नहीं है, तो ऐसे में उसकी डाइट में इन पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। बच्चों की किसी आहार विशेषज्ञ से व्यक्तिगत तरीके से जांच करवा कर बच्चे के लिए एक अच्छा मील प्लान तैयार करवाने में मदद मिलेगी जिसमें कैल्शियम और प्रोटीन की ज़रूरत के हिसाब से दूसरे खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है। तिल, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, कुछ दालें, और सूखी मछली में भरपूर मात्रा में प्रोटीन और कैल्शियम होता है।
- गले में खाना फंसने के ख़तरे को कम करने के लिए बच्चों को बड़े टुकड़ों की बजाय छोटे छोटे टुकड़ों में और कम मात्रा में खाना दें। बच्चे ऐसा तभी करते हैं जब उन्हें कोई बेचैनी हो और खाना खाने में जल्दबाज़ी करते हैं। इसलिए बच्चों को खाने के लिए पूरा समय देना चाहिए और उन्हें समझाना चाहिए कि खाना मुँह में नहीं भरना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चा खाना निगलने से पहले पूरी तरह से चबाए। इसके साथ ही बच्चे को ऐसा खाना दें जिसमे नमी हो, जैसे रोटी के साथ सूखी सब्ज़ी के बजाए ग्रेवी या दाल देनी चाहिए। बच्चे को टोस्ट किये हुए सैंडविच की जगह बिना टोस्ट किए ताज़ा ब्रेड के टुकड़े दें। बच्चों को खाने के बीच-बीच मे थोड़ा पानी भी पीने दें। इन छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखने से बच्चों को आराम से खाना खाने में मदद मिलेगी और उनके गले में खाना भी नहीं फंसेगा। अगर बच्चे को फिर भी यह परेशानी हो रही है तो आपको डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए।
अगर आपके बच्चे को सप्लीमेंट की ज़रूरत है, तो मल्टीविटामिन गोलियां ज़्यादा अच्छी नहीं मानी जा सकती हैं। बच्चे को एक खास न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट की ज़रूरत हो सकती है जिसमें विटामिन और मिनरल के साथ साथ कैलोरी और प्रोटीन भी हो, तो बच्चे को सही मापदंड के हिसाब से बढ़ने में मदद मिलेगी। हालांकि, आपको यह सब सिर्फ डॉक्टर की सलाह पर ही शुरू करना चाहिए।