बच्चे के जन्म के साथ ही दूध से उसका एक रिश्ता बन जाता है। यहाँ तक कि गर्भवती महिलाओं को भी दूध पीने की सलाह दी जाती है जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को दूध का पोषण मिल सके। पर जब बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाता है या किशोरावस्था में पहुँच जाता है तो एक माँ यह सोचने लगती है कि उसकी पोषण संबंधी ज़रूरतें पूरी करने के लिए उसे किस तरह का दूध देना बेहतर होगा। शुक्र है कि बाज़ारों में कई तरह के दूध मिलते हैं, नहीं तो बच्चे के लिए सेहतमंद और सुरक्षित दूध को चुनना मुश्किल होता। हम इस आर्टिकल में आपको अलग-अलग दूध के पीछे के विज्ञान को समझाएंगे और यह तय करने में आपकी मदद करेंगे कि बच्चे की बेहतर सेहत के लिए कौन सा दूध सही होगा।
टाइप 1: कच्चा दूध
गाय का कच्चा दूध सालों से भारत के लोगों के खाने का ज़रूरी हिस्सा रहा है। आज भी लोगों का मानना है कि पोषक तत्वों के लिए यह एक बेहतरीन स्रोत है। कच्चा दूध आपके आस-पड़ोस में आसानी से मिल जाता है और सीधा आपके घर पर पहुँचाया जाता है। लोगों तक पहुँचाने से पहले इसे किसी भी तरह से पाश्चुरीकृत या प्रोसेस नहीं किया जाता है।
गाय का कच्चा दूध दो तरह का होता है- ऑर्गेनिक और इनॉर्गैनिक। ऑर्गेनिक दूध उन मवेशियों से निकाला जाता है जिन्हें ऑर्गेनिक चारा दिया जाता है, मतलब कि उनके चारे में किसी भी तरह के कीटनाशक चीज़ों का इस्तेमाल नहीं होता है। वहीं इनॉर्गैनिक दूध उन गायों से निकाला जाता है जिनके चारे में कई तरह की रासायनिक मिलावट होती है। ऐसी गायों से ज़्यादा दूध निकालने के लिए हार्मोन्स / हार्मोन्स का इंजेक्शन लगाया जाता है।
कच्चा दूध खतरनाक क्यों हो सकता है
कई लोगों का मानना है कि गाय का कच्चा दूध ज़्यादा पौष्टिक और सेहतमंद होता है क्योंकि इसे ताज़ा निकाल कर लाया जाता है। यह पाश्चुरीकृत नहीं होता है इसलिए इससे कुछ गंभीर संक्रमण होने का खतरा रहता है। कच्चे दूध में कई कीटाणु ( जैसे ब्रूसेला, कैम्पिलोबैक्टर, क्रिप्टोस्पोरिडियम, ई. कोलाई, लिस्टेरिया, और साल्मोनेला) होते हैं, जिससे दस्त, मरोड़ और उल्टी जैसी परेशानियाँ हो सकती हैं। सिर्फ यही नहीं कच्चे दूध से हीमोलाइटिक यूरीमिक सिंड्रोम जैसी जानलेवा बीमारियाँ भी हो सकती हैं।
कब कच्चा दूध नहीं पीना चाहिए?
गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग, छोटे बच्चे, शिशुओं और ऐसे लोग जिनकी रोगों से लड़ने की शक्ति कमज़ोर है (ऐसे लोग जिन्हें कैंसर या एचआईवी है या जिन्होंने अंग प्रत्यारोपण किया है) उन्हें कच्चा दूध बिल्कुल भी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इससे उनके बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है।
टाइप 2: पाउच वाला दूध
भारत के शहरी इलाकों में पाउच वाला दूध काफी लोकप्रिय है। पाउच या पैकेट वाला दूध पाश्चुरीकृत और होमोजिनाइज़ होते हैं इसलिए इनका इस्तेमाल सुरक्षित है।
पाश्चुरीकरण क्या होता है?
पाश्चुरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें दूध को लंबे समय तक ज़्यादा तापमान पर गर्म किया जाता है। इससे कई तरह के खतरनाक किटाणु मर जाते हैं। पैकेट में मिलने वाले दूध को पैकेजिंग से पहले पाश्चुरीकृत किया जाता है।
क्या पाश्चुरीकरण से दूध के ज़रूरी पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं?
पाश्चुरीकरण के बाद भी सारे ज़रूरी पोषक तत्व दूध में रहते हैं। इसके अलावा कई तरह के किटाणुओं को खत्म करने की इसकी खूबी, इससे होने वाली तमाम कमियों से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
क्या पैकेट का दूध इस्तेमाल करना पूरी तरह से सुरक्षित है?
हमें यहाँ दो बातें समझनी होंगी, पहली यह कि ज़रूरी नहीं कि पैकेट का दूध ऑर्गेनिक हो। यानी कि यह दूध उन गायों का हो सकता है जिन्हें मिलावट वाला चारा खिलाया गया हो या जिन्हें हार्मोन/ हाॅर्मोन वाले इंजेक्शन लगे हों। ऐसे में पाश्चुरीकृत करने से दूध से मिलावट का असर नहीं जाएगा। इसलिए बेहतर होगा कि आप सर्टिफाइड ऑर्गेनिक दूध का ही इस्तेमाल करें।
दूसरी बात पैकेट वाले दूध की पैकिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक की क्वालिटी से जुड़ी है। हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा 2015 में की गई एक स्टडी के मुताबिक प्लास्टिक में पाए जाने वाला रसायन बीपीए (बिस्फेनॉल ए) हाॅर्मोन पर काफ़ी बुरा असर डालता है। इससे कई तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। जब पैकेट वाले दूध की प्लास्टिक पैकेजिंग पर धूप पड़ती है तो उसके बीपीए के अंश दूध में मिलकर उसे दूषित कर देते हैं।
टाइप 3: टेट्रा पैक में दूध
यह तीसरे किस्म का दूध है जो कुछ ही दिनों में भारत में काफ़ी लोकप्रिय हो गया है। टेट्रा पैक के दूध यूएचटी (अल्ट्रा हाई टेंप्रेचर) या एचटीएसटी (हाई टेंप्रेचर शॉर्ट टाइम) पर गर्म किए गए होते हैं। इस दूध को कुछ समय के लिए तय तापमान पर गर्म किया जाता है और फिर तुरंत ठंडा कर के टेट्रा पैक में पैक कर दिया जाता है। इसकी पैकिंग में सुरक्षा की 6 परतें होती हैं जिसकी वजह से यह जल्दी खराब नहीं होता।
दूध की बाकी दो किस्मों की तुलना में टेट्रा दूध सबसे सुरक्षित होता है। हालांकि ये उन जानवरों का भी हो सकता है जिन्हें मिलावटी चारा या बनावटी (नकली) हाॅर्मोन दिए गए हों।
निष्कर्ष
आपको कच्चा दूध बेहतर पौष्टिक विकल्प लग सकता है, पर यह पाश्चुरीकृत नहीं होता जिसकी वजह से इसमें बहुत से नुकसानदायक किटाणु होते हैं। अगर आप अपने बच्चे को किसी भी तरह के संक्रमण से बचाना चाहती हैं तो पाश्चुरीकृत दूध और खासतौर पर टेट्रा पैक दूध का इस्तेमाल करें।