क्या आपका बच्चा अच्छी तरह से खाना नहीं खाता है? क्या आपको लगता है कि आपके बच्चे को ईटिंग डिसऑर्डर (खाने के विकार) की समस्या है? बच्चों में पाए जाने वाले अलग-अलग तरह के ईटिंग डिसऑर्डर को जानने के लिए आगे पढ़ें और इसे ठीक करने के तरीकों के बारे में जानें।
ईटिंग डिसऑर्डर के प्रकार
ईटिंग डिसऑर्डर आज के समय में एक बड़ी परेशानी बन चुकी है, आजकल बच्चे अपने हमउम्र बच्चों को देखकर या उनकी पसंद की चीज़ें न होने की वजह से खाने से मना कर देते हैं, जो बच्चों में सेहत से जुड़ी बड़ी परेशानियों की वजह बनती है। तीन मुख्य ईटिंग डिसऑर्डर हैं:
1. एनोरेक्सिया नर्वोसा (भूख लगने पर भी खाना न खाना)- इस स्तिथि में बच्चा बहुत कम खाना खाता है जिसकी वजह से उसका वजन कम हो जाता है। ज़्यादातर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि वे अपने दोस्तों से मोटे दिखेंगे, एनोरेक्सिया से पीड़ित बच्चे अक्सर बहुत कम खाना खाते हैं और हर वक्त खाने और कैलोरीज़ के बारे में ही सोचते रहते हैं।
2. बुलीमिया नर्वोसा- इस स्थिति में बच्चे ज़रूरत से ज़्यादा खाना खाते हैं। जिसकी वजह से वे जो कुछ भी खाते हैं उसे बाहर निकाल देते हैं। इसे पर्जिंग कहते हैं। अपना वजन काबू में रखने के लिए वे बहुत ज़्यादा व्यायाम, वजन घटाने की गोलियों, और लैक्सटिव और ड्यूरेटिक का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं।
3. बिंज ईटिंग (ठूस ठूस कर खाना)- इस हालत में भी बच्चा ज़रूरत से ज़्यादा खाना खाता है। भूख न लगने के बाद भी उसे हर समय खाना चाहिए होता है, इस तरह के बच्चे अक्सर मोटापे का शिकार होते हैं। ऐसे बच्चे दूसरों से छुपाकर अकेले में खाने की कोशिश करते हैं और आम लोगों की तुलना में ज़्यादा तेजी से खाते हैं।
4. एआरएफआईडी (ARFID)- इसे एवोइडेंट-रेस्ट्रिक्टिव फूड इन्टेक डिसऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है, इस समस्या से पीड़ित लोग:
- खाने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं
- वे ज़रूरत के अनुसार वजन नहीं बढ़ा पाते हैं
- उनका डील-डौल अच्छा होता है
- अक्सर खाने से दूर भागते हैं
- उनका वजन घटता रहता है
ईटिंग डिसऑर्डर की वजह
वैसे तो ईटिंग डिसऑर्डर की कोई वजह नहीं होती है, यह आस-पास के माहौल, आनुवंशिकता, और तनाव की वजह से हो सकता है। हालांकि कुछ बातें हैं जो ईटिंग डिसऑर्डर से जुड़ी होती हैं।
- बॉडी अपीयरेंस या इमेज (शारीरिक सुंदरता)- यह आमतौर पर 10-12 साल के बच्चों में होता है जो अपने शरीर के आकार और डील-डौल को लेकर काफी सजग होते हैं।
- ऐसे बच्चे जिनके परिवार में किसी को मोटापा, मानसिक समस्या, डिप्रेशन, या कोई और बीमारी रही हो। जीन इसमें काफी अहम भूमिका निभाते हैं।
- जिन बच्चों में ईटिंग डिसऑर्डर पाया जाता है, अक्सर उनके परिवार के सदस्यों के बीच ठीक तरीके से बातचीत नहीं होती है, काफी तनाव होता है, और कई अनसुलझी परेशानियां होती हैं।
- जो बच्चे खेलकूद में ज़्यादा भाग लेते हैं उन्हें ईटिंग डिसऑर्डर होने की संभावना ज़्यादा होती है क्योंकि उनका ज़्यादा ध्यान खेलने पर होता है।
- ईटिंग डिसऑर्डर का सामना करने वाले बच्चों को अक्सर बेचैनी, डिप्रेशन, और मूड बदलने जैसी समस्याएं रहती हैं। उनका सही तरीके से भावनात्मक विकास नहीं हो पाता है और वे खुद को सब से दूर रखते हैं
लक्षण - लक्षण ख़ास तौर पर ईटिंग डिसऑर्डर के प्रकार पर निर्भर करते हैं। यहाँ बच्चों में पाए जाने वाले ईटिंग डिसऑर्डर के कुछ लक्षण दिए गए हैं:
एनोरेक्सिया नर्वोसा-
- बच्चे का वजन और बीएमआई सामान्य से कम होता है
- वजन बढ़ने का डर होना
- वजन घटते रहने के बावजूद खुद को मोटा समझना
- भूख लगने पर भी खाने से मना करना
- खाने की अजीब-अजीब आदतें
- बहुत ज़्यादा कसरत करना
- एनोरेक्सिया से जुड़े दूसरे लक्षण हैं- डिहाइड्रेशन, बेचैनी, कब्ज, थकान, और त्वचा का पीला पड़ना
बुलीमिया नर्वोसा-
- ज़रूरत से ज़्यादा उपवास रखना, अजीबोगरीब खाने की आदतें, जी मचलना, खाने से खुद को न रोक पाने का डर
- कम वजन होना
- अनियमित मासिक धर्म
- बेचैनी
- शरीर के रूप और आकार से असंतुष्ट रहना
- उदास रहना
- दूसरे लक्षण हैं: सूजा हुआ चेहरा, दांतों की सड़न, अक्सर पेट खराब होना, कब्ज और गले में खराश
बिंज ईटिंग (ठूस ठूस कर खाना)-
- थोड़ी-थोड़ी देर में बहुत ज़्यादा खाना
- भूख न लगने पर भी खाना
- रसोई घर से खाना गायब हो जाना
- बेचैनी
ईटिंग डिसऑर्डर का इलाज
इसका इलाज डाइटीशियन, डॉक्टर, और काउंसलर की हेल्थकेयर प्रोवाइडर टीम द्वारा बेहतरीन तरीके से किया जा सकता है । हो सकता है डॉक्टर डिप्रेशन और बेचैनी जैसी मानसिक परेशानियों के लिए दवा लेने की सलाह दे, और डाइटीशियन वजन बढ़ाने और घटाने के बारे में मरीज को पोषण से जुड़ी सलाह दे। कुछ गंभीर हालत में मानसिक बीमारी पर निगरानी रखने के लिए बच्चे को हॉस्पिटल में भी भर्ती करना पड़ सकता है।
ईटिंग डिसऑर्डर के दौरान देखभाल करने में मां-बाप की भूमिका
हर मां-बाप को बच्चों के बर्ताव पर नजर रखनी चाहिए, अगर उन्हें कोई भी लक्षण दिखाई दे तो इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
1. बच्चों के साथ दोस्ती भरा माहौल बनायें, शांत रहे और उनकी देखभाल करें, उनकी परेशानियों के बारे में उनसे बात करें, और उनकी भावनाओं को समझें और उन्हें सहज महसूस करवाएं। सब्र रखें और उनका साथ दें।
2. शुरुआत में ही मदद लें- कोई भी लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टर या हेल्थकेयर प्रोवाइडर से बात करें। साथ ही बच्चों के डॉक्टर से भी मिलें।
3. डॉक्टर से नियमित रूप से मिले- इलाज में समय लगता है, इसलिए मां बाप को बच्चों के साथ सब्र से काम लेते हुए डॉक्टर से हमेशा मिलते रहना चाहिए।
4. हर बच्चे को सहानुभूति और उदारता जैसी अच्छी आदतों को अपनाने के लिए बढ़ावा देना चाहिए।
5. मां-बाप को अपने बच्चों को खाने से मिलने वाले पोषण और उससे उनकी सेहत पर पड़ने वाले अच्छे असर के बारे में बताना चाहिए।