ज़्यादातर बच्चों के दाँत 6 से 12 महीने की उम्र में आने शुरू हो जाते हैं। इन्हें 'बेबी टीथ' कहा जाता है जो आगे चलकर टूट जाते हैं और इनकी जगह पर परमानेंट दाँत आ जाते हैं। ऐसा अक्सर बच्चे के 6 साल के हो जाने के बाद होता है। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि आपको अपने बच्चे के शुरुआती सालों में उनके ओरल स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ करना चाहिए। खराब डेंटल स्वास्थ्य की वजह से कैविटी, मुँह से बदबू आना, जीभ बाहर निकालना, अंगूठा चूसना, और दाँतों का जल्दी गिरना जैसी कई परेशानियाँ हो सकती हैं। बच्चों की छोटी उम्र में दाँतों का ख्याल ना रखने से उन्हें आगे चलकर परेशानी हो सकती है और उनके स्थायी (परमानेंट) दाँत भी खराब हो सकते हैं। इसलिए माता पिता को जल्द से जल्द अपने बच्चे का एक अच्छा ओरल हाइजीन रूटीन बनाना चाहिए।
बच्चों में ओरल स्वास्थ्य की परेशानियाँ
दाँतों की अच्छे से देखभाल ना करने के कारण नीचे बताई गई परेशानियाँ हो सकती हैं:
1. कैविटी
बच्चे कैंडी, चॉकलेट, डिब्बा बंद जूस और कोल्ड ड्रिंक के रूप में चीनी का सेवन करते हैं। इस तरह के शक्कर से मुँह में मौजूद बैक्टीरिया को खाना मिलता है जिससे कैविटी का खतरा बढ़ जाता है। कैविटी दाँतों के इनेमल को कमज़ोर कर देती है और अगर इसे लंबे समय तक नज़रअंदाज़ किया जाता है तो इस कारण दाँतों की जड़ें भी खराब हो सकती हैं।
2. अंगूठा चूसना
बच्चों का अंगूठा चूसना एक आम आदत मानी जाती है। अंगूठा और प्लास्टिक के निप्पल (पैसिफायर) चूसने से बच्चों को एक तरह का आराम और भावनात्मक सुरक्षा महसूस होती है लेकिन आगे चलकर कर इससे उनके दाँतों को नुकसान पहुँच सकता है। अगर बच्चे अक्सर और लंबे समय तक अपना अँगूठा चूसेंगे तो उनके परमानेंट दाँत आड़े-टेढ़े हो सकते हैं। इससे ओवरबाइट (एक तरह की समस्या) हो सकता है। इससे आपके बच्चे को कुछ ख़ास शब्दों को बोलने में भी दिक्कत आ सकती है।
3. दाँतों का जल्दी गिरना
दाँतों का जल्दी गिरना किसी चोट या दाँत सड़ने की वजह से हो सकता है। दाँतों के जल्दी गिरने से परमानेंट दाँतों के आने की जगह बदल सकती है और परमानेंट दाँतों के उभरने के लिए मौजूद जगह भी कम हो सकती है। नए दाँत टेढ़े-मेढ़े भी आ सकते हैं। इससे बच्चों को बोलने और उन्हें खाना चबाने में भी दिक्कत हो सकती है। इससे टेंपोरोमैंडीब्यूलर जॉइंट (जबड़े के आसपास के जोड़ों में) भी खराब हो सकता है।
घर पर दाँतों और मसूड़ों का ख्याल कैसे रखें?
दाँतों की देखभाल घर से ही शुरू होती है। माता पिता को बच्चे के दाँत आने से पहले ही उनकी डेंटल हेल्थ का ध्यान रखना शुरू कर देना चाहिए। स्वस्थ दाँतों और मसूड़ों के लिए यहाँ कुछ टिप्स दिए गए हैं।
अपने बच्चों को मुँह और दाँतों की साफ़-सफाई के नियमों का पालन करने के लिए कहें।
बच्चों को रोज़ सुबह और रात को ब्रश करना सीखना चाहिए। उन्हें हर बार खाना खाने के बाद कुल्ला करना भी सिखाना चाहिए। जैसे ही आपके बच्चे के कम से कम 2 दाँत एक दूसरे को छूने लग जाए, तब उन्हें अपने दाँतों को फ्लॉस करना भी सिखाया जा सकता है।
शक्कर की मात्रा कम करें
जंक फूड, मिठाई और पैकेज ड्रिंक में अतिरिक्त शक्कर मिली हुई होती है। यह कैविटी का सबसे बड़ा कारण है। इसलिए, बच्चों के खाने में शक्कर की मात्रा कम कर देनी चाहिए। उन्हें जंक फूड की जगह घर पर बने हेल्थी स्नैक्स खिलाने चाहिए। ऐसा कर के आप बच्चों के खाने में शक्कर की मात्रा को नियंत्रित कर सकते हैं।
नियमित डेंटल चेक-अप
आपके बच्चों के लिए नियमित डेंटल चेकअप काफ़ी ज़रूरी होता है। पहला चेकअप बच्चे के 1 साल के होने से पहले ही शुरू हो जाना चाहिये। इसके बाद साल में कम से कम 1 बार दाँतों का चेकअप करवाना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे डेंटिस्ट से डरेंगे नहीं और छोटी उम्र से ही दाँतों में होने वाली परेशानियों का पता लग जाएगा।
पैसिफायर (चूसनी) का इस्तेमाल बंद करना
बच्चे के पैदा होने से 2 साल की उम्र तक उन्हें पैसिफायर चूसने से भावनात्मक सहारा और आराम मिल सकता है लेकिन 2 साल की उम्र के बाद ऐसा करना छोड़ देना चाहिए। आप पैसिफायर को किसी कड़वे जूस (जैसे एलोवेरा) में डुबा सकते हैं ताकि आपका बच्चा इसे चूसना छोड़ दे।
सेब, गाजर और अजवाइन जैसे कुरकुरे खाद्य पदार्थ दाँतों की सेहत के लिए अच्छे होते हैं क्योंकि ये दाँतों से प्लेक निकालते हैं।
इसी तरह, हरी पत्तेदार सब्जियाँ और ब्रोकली में अच्छी मात्रा में विटामिन और मिनरल होते हैं जो कि स्वस्थ इनेमल के लिए ज़रूरी होते हैं। बीज और बादाम आदि में जो मिनरल होते हैं वो भी दाँतों के इनेमल के लिए अच्छे होते हैं और इसे मज़बूत करते हैं। दाँतों को प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए बच्चों को यह बताना भी ज़रूरी है कि उन्हें क्या चीज़ नहीं खानी चाहिए। इसमें कैंडी, टाॅफी, ब्रेड, चिप्स और दूसरे तरह के जंक फूड शामिल हैं।