क्या आप भी अपने बच्चे के खाने की पसंद बढ़ाने को लेकर परेशान हैं? अगर आपका बच्चा भी खाने में काफ़ी नखरे करता है, तो हम आपको बताएँगे कि किस तरह आप उसके स्वाद को और ज़्यादा विकसित कर सकती हैं और उसके खाने की सीमित पसंद को बढ़ा सकती हैं।

बच्चे में स्वाद और संवेदी अनुभूति (सेंसरी परसेप्शन) का विकास

जब बच्चे 12 महीने के हो जाते हैं तो वे सिर्फ दूध पर निर्भर नहीं रह जाते बल्कि और भी कई तरह की चीज़ें खाना शुरू कर देते हैं। 12 से 18 महीने का होने तक बच्चों की भोजन में अपनी पसंद-नापसंद बनने लगती है और वे भोजन के रंग-रूप और स्वाद के मेल को पहचानने भी लगते हैं। खाना कैसा दिख रहा है, इसके आधार पर बच्चे ये समझने लगते हैं कि वो खाना उनके लिए जाना-पहचाना है या नहीं है। वे भोजन के रंग-रूप के हिसाब से खाने को ना कहने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते और वे ये चीज़ ना सिर्फ नए तरह के भोजन के साथ करते हैं बल्कि उन भोजन के साथ भी कर सकते हैं जिन्हें वो अभी तक चाव से खाते थे। भोजन में आए छोटे से बदलाव से भी वो खाने को मना कर सकते हैं। बच्चे को शुरू के 6 महीनों में एक या दो तरह के स्वाद का अनुभव करवा देना चाहिए ताकि उन्हें आगे चलकर 14 या उससे ज़्यादा तरह के स्वाद का अनुभव लेने में कोई परेशानी ना हो और इसलिए इस उम्र के शुरुआती पड़ाव में ही स्वाद और पसंद-नापसंद का विकास होना बेहद ज़रूरी है।

बच्चे के स्वाद को आकार देने वाले कारक

यहां कुछ ऐसी चीज़ों के बारे में बताया गया है जो आपके बच्चे की पसंद-नापसंद बनाने में मदद करती हैं:

  • ये बात साबित हो चुकी है कि बच्चे भोजन को बार-बार दोहराने से अपने स्वाद को विकसित करते हैं। वे वैसे ही भोजन को खाना पसंद करते हैं जो उनके लिए जाना-पहचाना हो, खासकर तब, जब उन्हें उस भोजन को खाकर अच्छा महसूस होता हो। ऐसा माना जाता है कि बच्चे किसी भोजन को पहचानने और पसंद करने से पहले उसे लगभग 15 बार खाते हैं।

  • बच्चों को ऐसे भोजन ज़्यादा खिलाने की सलाह दी जाती है जिनमें अच्छी मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं। इससे उन्हें समय के साथ पौष्टिक भोजन के स्वाद को विकसित करने में मदद मिलती है।

  • भोजन की गंध, वह कैसा दिखता है और उसकी अनुभूति (परसेप्शन) भी स्वाद को आकार देने में मदद करते हैं। अगर आप बच्चे को पौष्टिक भोजन से जुड़ी कहानियाँ, गानें सुनाने या आर्ट दिखाने जैसा नया अनुभव देती हैं तो यह भी उनके स्वाद को विकसित करने में मदद कर सकता है।

  • बच्चों को मस्ती और रोमांच बहुत पसंद होता है इसलिए भोजन के दौरान मस्ती भरी गतिविधियों को करने से आपके बच्चे की नए आहार को आज़माने की उत्सुकता में सुधार आ सकता है।

  • आपको अपने बच्चों को रसोई, बाज़ार और खाने की टेबल पर भोजन से जुड़े फ़ैसलों में शामिल करना चाहिए। ख़रीददारी करने के दौरान उन्हें चीज़ों को उठा कर कार्ट में डालने को कहना इसका एक अच्छा उदाहरण हो सकता है। इससे उनकी चीज़ों पर अपना हक होने की समझ विकसित होती है। हालाँकि हर बच्चे को रसोई में जाना पसंद नहीं होता, ऐसे में बच्चों को कभी-कभी भोजन बनाते समय साथ में शामिल करना चाहिए।

  • बच्चों के भोजन को ना कहने के कारणों को समझ कर भी उनके स्वाद को सुधारा जा सकता है। बच्चे कई कारणों से किसी भोजन को खाने से मना कर सकते हैं। माता-पिता की बच्चों की सेहत और विकास को लेकर होने वाली बेचैनी इसका एक प्रमुख कारण मानी जाती है। यहां कुछ ऐसे कारण बताए जा रहे हैं जिन्हें पढ़कर आपको पता लग जाएगा कि माता-पिता बच्चों के भोजन को ना कहने में किस तरह से योगदान देते हैं:

    • माता-पिता ज़रूरत से ज़्यादा वक्त तक दूध पिलाने की कोशिश करते हों।

    • माता-पिता बच्चों के गाढ़ा भोजन को खिलाने में देरी करते हों क्योंकि उन्हें लगता हो कि ऐसा भोजन गले में अटक जाएगा।

    • माता-पिता बच्चे को आहार-संबंधी असंतुलन से बचाने के लिए कुछ तरह के आहार को ज़बरदस्ती खिलाने की कोशिश करते हों।

    • माता-पिता कुछ आहार को नियमित तौर पर ज़बरदस्ती खिलाते हों।

बच्चों की भोजन और स्वाद संबंधी पसंद को सुधारना

नीचे कुछ बातें बताई जा रही हैं जिन्हें अपना कर बच्चों की स्वाद और भोजन संबंधी पसंद को सुधारा जा सकता है।

  • बच्चों को शुरुआती दौर में ही पोषक तत्वों से भरपूर भोजन खिलाना चाहिए और समय के साथ इन्हें अक्सर खिलाने की कोशिश करनी चाहिए।

  • हो सकता है बच्चे शुरुआत में किसी नए भोजन को पसंद ना करें मगर कुछ समय तक कोशिश करते रहने से हो सकता है कि वो उस भोजन के लिए अपना स्वाद विकसित कर लें। हालाँकि, माता-पिता को ध्यान देना चाहिए कि वे इस बात को लेकर बच्चों को ज़्यादा तंग ना करें।

  • माता-पिता बच्चों के ठोस भोजन को खिलाने में देरी करते हों क्योंकि उन्हें लगता हो कि ऐसा भोजन गले में अटक जाएगा।

  • उन्हें नियमित रूप से घर का खाना दें।

  • आपको बच्चे को भोजन से खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

  • आपको खुद भी वैसा ही भोजन करना चाहिए जैसा भोजन आप अपने बच्चों को खिलाना चाहते हैं।

  • बच्चों को ज़बरदस्ती खिलाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

  • उनके पसंदीदा भोजन के साथ उन्हें नापसंद आने वाले भोजन को नहीं परोसना चाहिए।

  • अपने बच्चों को खाने में नखरें करने वाला ना कहें क्योंकि ये उन्हें ज़िद्दी बना सकता है।

  • एक ही खाने को अलग-अलग तरह से बनाकर अपने बच्चे को दें और भोजन से जुड़े फैसले लेने में उन्हें भी शामिल करें।

  • भोजन के बदले किसी और चीज़ को ना दें क्योंकि ये उनके स्वाद को विकसित करने की प्रक्रिया में देरी ला सकता है।

बच्चे लगभग 18 महीने की उम्र से खाने में नखरे दिखाने लगते हैं जो उनके बचपन से कहीं आगे तक जारी रह सकता है। ये नखरे कई तरह के हो सकते हैं और इसलिए ये समझना ज़रूरी है कि आपके बच्चे के लिए क्या काम करता है। माता-पिता की बच्चों के भोजन को लेकर होने वाली बेचैनी उनके खाने को ना कहने का एक अहम कारण होती है और उन्हें इससे बचना चाहिए। बच्चों के विकास के शुरुआती दौर में ही उन्हें पोषक तत्वों से भरपूर भोजन का अनुभव कराना पौष्टिक खाने में स्वाद और रुचि विकसित करने में उनकी मदद कर सकता है।