अगर आपको पता चले कि आपका बच्चा टाइप 1 डायबिटीज़ जैसी बीमारी से पीड़ित है तो ये किसी भी माता-पिता के लिए डरा देने वाला बात हो सकती है। इस तरह की डायबिटीज़ से जुड़ी कौन-कौन सी ऐसी बातें हैं जो आप सभी को पता होनी चाहिए। और अगर आपका बच्चा ऐसी किसी बीमारी से पीड़ित है तो उसे किस तरह की चीज़ें खिलाना ज़रूरी है, इन सभी बातों की जानकारी यहाँ दी गई है।

टाइप 1 डायबिटीज़ किस वजह से होता है?

टाइप 1 डायबिटीज़ एक ऐसी स्थिति है जो शरीर में इंसुलिन हार्मोन (ये खून में मौज़ूद शुगर को एनर्जी में बदलने का काम करते हैं) की कमी से होती है, जिसमें अग्न्याशय ग्रंथि (पैंक्रियाज) इंसुलिन हार्मोन नहीं बना पाती है।

ये बच्चों में एक ऐसी स्थिति है (इसे जुवेनाइल डायबिटीज़ के नाम से भी जाना जाता है) जिसमें उनका शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता है, जो ग्लूकोज़ को शरीर में बहने वाले खून से कोशिकाओं में ले जाने का काम करता है और जिसका इस्तेमाल आगे जाकर एनर्जी पैदा करने के लिए होता है। इन्सुलिन के बिना ग्लूकोज़ खून के साथ आगे नहीं बढ़ पाता है जिस वजह से खून में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ने लगती है।

बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज़ के लक्षण

  • टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों को ज़्यादा प्यास लगती है। वे सामान्य से ज़्यादा पानी पीते हैं और पेशाब करते हैं। यह खास तौर से शरीर में बहने वाले खून में अतिरिक्त शुगर बनने की वजह से होता है जो टिश्यू से पानी खींचने लगता है। बहुत ज़्यादा हालात बिगड़ने पर बच्चा बिस्तर में पेशाब भी करने लगता है।
  • चूंकि शरीर की कोशिकाओं में ज़रूरी मात्रा में शुगर नहीं होती है, इसलिए शरीर में एनर्जी की कमी होने लगती है। इससे बहुत ज़्यादा भूख भी लगती है।
  • टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चे का वज़न तेज़ी से कम हो सकता है। एनर्जी की कमी से शरीर में जमा फैट (चर्बी) भी कम होने लगता है।
  • एनर्जी की कमी से बच्चों को थकान और सुस्ती महसूस होने लगती है।
  • टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों के व्यवहार में बार-बार मूड बदलना या स्कूल में पढ़ाई-लिखाई और दूसरे कामों में परफॉरमेंस खराब होना जैसे कई तरह के बदलाव दिखने लगते हैं ।
  • उनकी साँस से फल जैसी गंध आ सकती है क्योंकि उनका शरीर शुगर की जगह फैट जलाता है।
  • बच्चों को धुँधला दिखने की समस्या भी हो सकती है क्योंकि खून में बहुत ज़्यादा मात्रा में मौजूद शुगर का स्तर आंखों के लेंस से लिक्वीड खींच सकता है। बच्चे को ठीक से एक जगह ध्यान लगाने में भी परेशानी होती है।
  • जो लड़कियां टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित होती हैं, उनमें जनन अंंग में यीस्ट इन्फेक्शन होता है। यीस्ट इन्फेक्शन की वजह से छोटे बच्चों में डायपर से लाल चकत्ते पड़ने की समस्या होने लगती है ।

जिन बच्चों को जुवेनाइल डायबिटीज़ है, उनकी डाइट के लिए ज़रूरी टिप्स

अगर आपके बच्चे को डायबिटीज़ है, तो आपको तुरंत बच्चों के ऐसे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। वे आपको टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों के डाइट प्लान के बारे में सलाह देंगे। जुवेनाइल डायबिटीज़ को मैनेज करने के लिए कुछ सामान्य डाइट नियम इस प्रकार हैं:

  • टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों को संतुलित डाइट लेनी चाहिए और डाइट प्लान का सही तरह से पालन करना चाहिए।
  • उन्हें नियमित अंतराल पर खाना खाते रहना चाहिए।
  • बताए गए डाइट प्लान में सीमित मात्रा में फैट और कैलोरी होनी चाहिए क्योंकि इससे अतिरिक्त वज़न बढ़ने या दिल की बीमारी जैसी सेहत से जुड़ी समस्याएँ पैदा हो सकती है और डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों को पहले से ही दिल की बीमारी होने का खतरा होता है।
  • आपको ऐसी चीज़ें भी खाना कम करना देना चाहिए जो हाई ब्लड प्रेशर, और मैक्रोवैस्कुलर (दिल का दौरा, स्ट्रोक और पैरों में सही मात्रा में खून का नही पहुँचना ) बीमारियों का खतरा बढ़ा देती हैं।
  • 2 साल से ज़्यादा उम्र के बच्चों को ऐसा खाना देना चाहिए जिसमें हाई-फाइबर (रेशेदार खाना) हो क्योंकि ये उनके लिए फ़ायदेमंद हो सकता है।
  • नमक का इस्तेमाल भी कम कर देना चाहिए क्योंकि ज़्यादा नमक खाने से हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ सकता है।
  • प्रोटीन भी सिर्फ बताई गई मात्रा में ही लेना चाहिए। ये ज़रूरी कैलोरी का सिर्फ 12-20% होना चाहिए। डायबिटीज़ में ज़्यादा प्रोटीन लेने की सलाह बिल्कुल नहीं दी जाती है।
  • डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों में एनर्जी कम होती है, इसलिए उन्हें फाइबर, विटामिन और मिनरल्स के साथ साथ ज़्यादा कार्बोहाइड्रेट भी दिया जाना चाहिए।
  • डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों को ज़्यादा से ज़्यादा फाइबर लेना चाहिए। उन्हें खाने में बिना छिले हुए फलों के साथ, खाने वाले बीज, सब्जियां, फलियां, ओट्स, सेम, और साबुत अनाज दिए जाने चाहिए। घुलनशील (सॉल्युबल) फाइबर कोलेस्ट्रॉल स्तर को बेहतर करता है और कार्बोहाइड्रेट अवशोषण (अब्सॉर्प्शन) को भी धीमा कर देता है। इससे खून में ग्लूकोज़ (शुगर) का लेवल और इन्सुलिन की ज़रूरत कम हो जाती है। ज़्यादा फाइबर वाली डाइट 3 साल की उम्र के बाद ही दी जानी चाहिए।

डायबिटिज़ से पीड़ित बच्चे के लिए नाश्ता: बहुत देर तक खेलने के बाद पोस्ट -एक्सर्साइज़ या प्लेटाइम हाइपोग्लाइसीमिया (ब्लड शुगर गिरना) से बचने के लिए डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चे को सोने से पहले कुछ चीज़ें खाने के लिए दी जानी चाहिए, जिसमें प्रोटीन और फैट हो और जिसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स (खाने में कार्बोहाइड्रेट कंटेंट की मात्रा और ब्लड शुगर के लेवल को बताता है) कम हो।

हम में से कई लोगों ने टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों के बारे में सुना होगा, लेकिन हम में से कितने लोग जानते हैं कि यह क्या है और कैसे होता है। इसलिए, अगर आपको अपने बच्चे में डायबिटीज़ का पता चलता है, तो इसके बारे में ज़्यादातर चीज़ें समझ लेना ज़रूरी है ताकि आपको मालूम हो कि इस समस्या से बेहतर तरीके से कैसे निपटा जा सकता है।