भोजन और भावनओं का गहरा रिश्ता है क्योंकि अलग अलग प्रकार की डिश लोगों के मन में खुशी, शांति और यहां तक कि नीरसता की भावनाएं पैदा कर सकती हैं। भावनाओं या इमोशन्स के हिसाब से खाना खाने का मतलब है कि लोग अपने मूड के हिसाब से खाना खाते हैं उदाहरण के लिए, जब कोई ख़ुश और उत्साहित होता है उसे मीठे व्यंजन और स्नैक्स खाने का मन करता है। दूसरी ओर, अवसाद, चिंता, अकेलापन इन सब भावनाओं के कारण किशोरों में ईटिंग डिसऑर्डर या एनोरेक्सिया नर्वोसा की शिकायत होती है और ऐसे में वे लगातार खाना ही खाते रहते हैं।

ज़्यादातर मामलों में, इमोशनल ईटिंग या भावनाओं के हिसाब से खाना, बच्चों और वयस्कों दोनों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है जिससे अन्य कई बीमारियाँ भी हो सकती हैं। और यह आपके लिए चिंता की बात हो सकती है।

बच्चों पर इमोशनल ईटिंग के प्रभाव

बचपन एक ऐसा पड़ाव होता है जिसमें आपका छोटा बच्चा कई बदलाव देखता है, सीखता है, और अनुभव करता है जिससे कभी-कभी चिंता, घबराहट, अकेलापन, उदासी या उबासी जैसी भावनाएँ पैदा हो सकती हैं। और ऐसे में बच्चे भावनाओं के हिसाब से खाना खाने लगते हैं जहां उन्हें नमकीन, कुरकुरे खाद्य पदार्थ जैसे चिप्स,पिज़्ज़ा, कुकीज आदि खाने की तीव्र इच्छा होती है। ये हाई फैट और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ शरीर में एक रसायन को सक्रिय करते हैं, जो संतोष और तृप्ति की भावना देता है और इसकी बुरी आदत भी लग जाती है। इस तरह खाना खाने से बच्चों का वज़न बहुत तेज़ी से बढ़ता है और बच्चों में मोटापे का कारण बन सकता है। इस तरह भावनाओं के हिसाब से खाना उनके स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद नहीं और भविष्य में यह समस्या और गंभीर हो सकती है। इसमें डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां और ऐसे ही अन्य मामले शामिल हैं।

इमोशनल ईटिंग के फ़ायदे और नुकसान

भावनाओं के हिसाब से खाना खाने के फ़ायदे और नुकसान यहाँ दिए गए हैं:

फ़ायदे

नुक्सान

  • बच्चों को चिंता कम होगी और अपराध बोध भी नहीं होगा

  • इमोशनल ईटिंग से बच्चों का वज़न बढ़ता है, हॉर्मोन्स में असंतुलन आता है और अन्य बीमारियों का ख़तरा होता है

  • वह आराम से खाना खायेगा और चिंता मुक्त रहेगा

  • इमोशनल ईटिंग के कारण बच्चों का फ़ोकस सही नहीं रहता है।

  • इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा

  • बच्चे केवल स्नैक्स और मीठा खाने की मांग करेंगे तो उनके शरीर में पोषण की कमी हो सकती है।

इमोशनल ईटिंग को कैसे रोकें

  1. टीवी देखने का समय कम करें- बहुत सारे शोधों से पता चला है कि बच्चे जितना ज़्यादा टीवी देखते हैं उतना ही ज़्यादा खाना भी खाते हैं। ज़्यादातर बच्चे टीवी देखते समय स्नैक्स खाना पसंद करते हैं भले ही उन्हें भूख न लगी हो। उनमें से बहुत सारे बच्चे टीवी पर आने वाले मीठे और फ़ास्ट फ़ूड के प्रचार देखकर भी प्रभावित होते हैं और वही खाने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं। इसलिए बच्चों को एक दिन में सिर्फ़ 2 घंटे ही टीवी या मोबाइल देखना चाहिए।

  2. खाने तय जगह पर रखें- घर में खाद्य पदार्थों को या तो रसोई में रखें या डाइनिंग एरिया में रखें। ताकि बच्चों को यह पता रहेगा कि खाना खाने की तय जगहें कौन सी हैं। इस प्रकार वे टीवी देखते हुए खाना नहीं खाएँगे। बच्चों को फल और सब्ज़ियों के रूप में सेहतमंद स्नैक्स दें।

  3. भावनाओं में बहकर खाना खिलाने से बचें अगर बच्चा क्लास में सबसे अच्छे नंबर लाता है तो अक्सर माँ बाप इस ख़ुशी को फ़ास्ट फ़ूड या मीठा खाकर सेलिब्रेट करते हैं। हालांकि कभी कभार इस तरह के भोजन ठीक हैं लेकिन बच्चों को तोहफ़े के रूप में खाना देना कम करना चाहिए। इसकी बजाय आप पूरे परिवार के साथ किसी ऐतिहासिक या शैक्षिक संस्थान में घूमने जा सकते हैं।

  4. डाइटिंग कराने से बचें - कुछ माता पिता अपने बच्चों के आहार को लेकर बहुत सख़्त होते हैं और इससे बच्चों में ईटिंग डिसॉर्डर हो सकते हैं। याद रखें कि सही विकास के लिए बच्चों को पर्याप्त कैलोरी की ज़रूरत होती है और बच्चों को संतुलित आहार ही खिलाना चाहिए ताकि उनके विकास के लिए उन्हें ज़रूरी पोषण मिल सके। आपको ख़ुद भी सेहतमंद और संतुलित आहार लेना चाहिए ताकि आप अपने बच्चों के लिए अच्छे रोल मॉडल बन सकें और बच्चों में डाइटिंग की आदत ख़त्म कर सकें।

  5. बच्चे क्या खा रहे हैं इसका ध्यान रखें- जैसे जैसे आपका बच्चा बड़ा होता है, आपको उसके लिए डायरी बना के रखनी चाहिए जिसमें आपको यह लिखना होगा कि बच्चा रोज़ाना क्या खाता है। आप अपने प्रीटीन्स से यह डायरी बनाने के लिए ख़ुद ही कह सकते हैं ताकि उनमें इमोशनल ईटिंग की समस्या नहीं होगी।

  6. बच्चे के माहौल का भी ख़्याल करें- बच्चों के लिए हमेशा पौष्टिक टिफ़िन ही पैक करें जो उनके पसंद का भी हो। कभी कभार अगर बच्चों के पसंद का टिफ़िन नहीं होता है तो वे पियर प्रेशर में आकर कैंटीन से फ़ास्ट फ़ूड और स्नैक्स खाने लगते हैं।

  7. बच्चों को बाहर लेकर जाएँ: बच्चे प्रकृति के बारे में बहुत जिज्ञासु होते हैं और अलग अलग प्रकार के खेल आदि में उनका मन लगता है। तो बच्चों के साथ हाइकिंग, स्थानीय पार्क, या फुटबॉल गेम दिखाने या वॉक पर जाएँ। इससे आपके बच्चे एक्टिव रहेंगे और उन्हें अकेलेपन का एहसास भी नहीं होगा और इमोशनल ईटिंग भी कम होगी।

  8. बच्चों के सामने सही शब्दों का इस्तेमाल करें- बच्चों की पसंद के कारण उनकी आलोचना करना या उन्हें डाँटने की बजाय उनकी ज़रूरतों को समझना बहुत ज़रूरी होता है। अक्सर माता पिता बच्चों के मोटापे के कारण बच्चों को शर्मिंदा करते हैं और स्वस्थ जीवनशैली न होने के कारण अनजाने में ही उन्हें हतोत्साहित कर देते हैं। तो बच्चों से अच्छे से बात करें, उनकी परेशानियों को समझें और स्वस्थ जीवनशैली और शारीरिक गतिविधियों के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करें।

अंत में

ऊपर बताए गए कारणों से बच्चे अक्सर भावनाओं के हिसाब से खाना खाने लगते हैं। आपके बच्चे की भूख उसकी शारीरिक और मानसिक ज़रूरत पर निर्भर करती है। शारीरिक भूख शांत करने के लिए आप उसे पौष्टिक भोजन खिला सकते हैं लेकिन भावनाओं के हिसाब से भूख लगने पर बच्चे अक्सर अनहेल्दी स्नैक्स की इच्छा ज़ाहिर करते हैं। बच्चे अकेलेपन, चिंता, अवसाद, या अपराधबोध के कारण ज़्यादा फ़ास्ट फ़ूड या स्नैक्स खाने लगते हैं। इसलिए यह देखना ज़रूरी है कि वे क्या खा रहे हैं और उनकी परेशानियों को समझें।